चुपचाप

चुपचाप
चुपचाप सब हो जाता है ।
होकर के गुजर जाता है ।।

वो शैतानी काला साया,
पीछे से आ जाता है ।
गुर्रा के ऐसे झपटता हैै
जैसे बाज चिड़िया ले जाता है ।।
बदन पर फर्क क्या ही पड़ेगा ।
ये रूह में आग लगाता है ।।

चुपचाप सब हो जाता है,
होकर के गुजर जाता है ।
रास्ते पर इज्ज़त लुटती है,
रास्ता भी थरथराता है ।।
आंख से आंसू नहीं गिरता है ।
कुछ लहू सा टपक जाता है ।।
मिलता उसको इंसाफ यहां,
जो इसके लिए लड़ जाता है ।
और उसके ज़ख्म नासूर बने,
जो अपने ज़ख्म छिपाता है ।।

चुपचाप सब हो जाता है ।
होकर के गुजर जाता है ।।

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