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चुपचाप

चुपचाप चुपचाप सब हो जाता है । होकर के गुजर जाता है ।। वो शैतानी काला साया, पीछे से आ जाता है । गुर्रा के ऐसे झपटता हैै जैसे बाज चिड़िया ले जाता है ।। बदन पर फर्क क्या ही पड़ेगा । ये रूह में आग लगाता है ।। चुपचाप सब हो जाता है, होकर के गुजर जाता है । रास्ते पर इज्ज़त लुटती है, रास्ता भी थरथराता है ।। आंख से आंसू नहीं गिरता है । कुछ लहू सा टपक जाता है ।। मिलता उसको इंसाफ यहां, जो इसके लिए लड़ जाता है । और उसके ज़ख्म नासूर बने, जो अपने ज़ख्म छिपाता है ।। चुपचाप सब हो जाता है । होकर के गुजर जाता है ।।