माटी से इश्क


 माटी से इश्क

आज बसंत पंचमी है, आज सरस्वती पूजन होता है|

जमीन के संग कागज का मोह जुड़ा होता है| कागज भी कमाल का! जमीन की दिशा – दशा – मालिकाना हक़, सब कागज की उस पुड़िया में बंधा रहता है और जिद देखिये कि हर कोई उसे अपने हिस्से में रखने की जुगत में लगा रहता है| जमीन मायावी है, तिलिस्मी है| मैं जमीन को कागजी दावं – पेच से आगे एक जीवन की तरह देखता हूँ| आप इसे एक किसान की माया कह सकते हैं, लेकिन कदंब,बांस आदि के बाद अब नीम के पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि प्रकृति से भी बना रहे, नीम की तरह| नीम, जिसे गावं का दवाखाना कहा जाता है, जिसे सूरज का प्रतिबिम्ब  कहा जाता है| यह सब इसलिए, क्योंकि किसानी कर रहे हम लोग जमीन में उलझकर जीवन से अक्सर परेशान हो जाते हैं| और कागजों में उलझकर किसानी के पेशे का पूरा आनंद नहीं  उठा पाते| सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है| हो सकता है कि यह बात आपको पसंद नहीं आए, लेकिन जमीन की लड़ाई अब इसी के आस-पास घूम रही है| ऐसे में, पेड़ से प्रेम करना हम तमाम किसानों को सीखना होगा| जमीन की कागजी लड़ाई से कहीं आगे निकलकर माटी से इश्क करना होगा| जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे|




----- गिरीन्द्र नाथ झा

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